कभी कभी प्रेरणा नहीं मिलती कुछ लिख जाने की तों हम कुछ लिख ही नहीं पाते ...पर उस वक्त शायद शब्द भी रूठे होते हैं ..वैसे ही एक असमंजश की हालात में पड़ा..शब्दों को धुन्दने की कोशिस कर कुछ लिखने की कोशिस करता में... कुछ अपनी हालात यूँ लिख गया ....
शब्द आज शुस्त थे
निष्क्रिय
निष्कर्म
निश्वाश से
बिखरे पड़े थे
कुछ शब्द
रेतों में छिपे थे
कुछ टीले के मुंडेर में अलसाये थे
कुछ इर्द गिर्द आवारा बन घूम रहे थे
पर कोई न था
हमसे मिलने के तह में
विचारों कि वेग से
उन्हें बुलाता
आते वो
छू कर मुझे
वापस चले जाते
थक आहर कर मैंने जब
उन्हें दांत लगायी
तों सब उमड़ आये
विद्रोह मन में लिए
सब घुमड़ पड़े..
सह्बदों ने फिर
अपनी व्यथा सुनाई
सुन व्यथा को उनके
मन सिहर पड़ा
जब भी हम शब्द
तुम्हरे दिल में जन्म ले
ज़हन से उतर
पन्नों में आते थे
पन्नों से निकल हम फिर
अपनी जीवन जी लेते थे
पन्नों से निकल कर हम
कभी लबों में सजते थे
कभी कारे जुल्फों के लटों में झूलते
कभी गाल के तीलों में छुपते
कभी आँखों के कजरे से सजते
आंसुओं कि मोती में हम नहाते
तों कभी हाथों के मेहँदी में सज जाते
जब थक जाते यूँ छुप्पन छुपाई से
नर्म से अंगों में उनके सो जाते
एक एक पल हम यूँ जीते
बोझिल सी निंदिया में भी हम
कई कई बार जग उठते
कभी वो नर्म सी उँगलियों से हमे टटोलती
आहिस्ते से हमे सहलाती
आनंदविभोर हो हम हर पल जी आते
आन्द्विभोर कर हम
नयी शब्दों के साथ
नयी छंदों के साथ वापस आते
हर पल कितना कुछ जी पाते
पर आज न हमे वो छूती हैं
न टटोलती हैं
न नर्म से तन के सेज पर
हमे सुलाती हैं
न मेहँदी में सजाने की
चाह है उनमे
न लटों में झुलाने की
न लबों में सजाने की
चाह है उनमे
प्रेयसी ने तुमसे मुह यूँ मोड़ा है
सजा हमे भी दे डाला है
क्यूँ चाहते हो हमे फिर अपने
तीन शब्दों में सजने को
क्यूँ चाहते हो अन्यथा दौडने को
जन्म तों हमारी तुम से होती है
और मौत भी बिन जिए तुमपे ही होती है
क्यूँ हमे फिर छंदों में सजाते हो ..
किसके लिए हमे यूँ जिलाते हो
शब्दों के शब्द में
पड़ी एक सच्चाई थी
पर रूठी अपनी [प्रेयसी को
न मन पाने की
मज़बूरी भी हमारी थी
बिखरे अपने रिश्ते को
न सजा पाने की कमजोरी भी हमारी थी
मजबूर हुआ में
सुन इन शबदों के दलीलों को
बेबश सा मै, रेतो में फिसलते शब्दों
को देखता रहा
शब्दों का विद्रोह देख
३-शब्दों में न बंधते देख
अब सोचता हूँ कहीं
इन शब्दों की लय टूट न जाय
सजती अब ये शब्द ठहर न जाए
निष्क्रिय हो आज
शब्द फिर छूट न जाए
निष्क्रिय हो आज शब्द फिर सुप्त न हो जाए ................
आशु.... शब्दों के खोज में ....
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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.