कभी कभी मन इतना व्याकुल हो जाता है जब रिश्तों से आघात पहुंचाता है.. एक आघात के बाद मन इतना टूट जता है की दुःख से मन ऐसा ही सोचता होगा. ये रचना मेरे मातृभाषा भोजपुरी मैं है..दूसरी रचना है मेरी भोजपुरी मे, पहली एक खत थी जो बहुत ही प्रिय है और अप्रकशित है और रहेगी. एक कोशिश... बोझिल मन से डोम भोजपुरी में चंडाल को कहते हैं....
नाता से नत बधिह
पइह जब देहवा हमार
बंसवा से जब बधिह
सब रसिया से बधिह हमरा
नाता से नत बधिह
खिच’ब जब हमरा के
आपन काधा से खिचिह
सब काधा तू खोजीह
लेकिन नाता मे नत खोजिह
जरयिबा जब हमरा के
सब जगह्वा से
अगिया मंगिहा
नाता से नत मंगिहा
सब रसिया से बधिह हमरा
नाता से नत बधिह
का कही काहे रोयिला
का कही काहे कहिला
कुफूत पडल बा देह मे जब जब
नाता सब भागल बा तब तब
माँई हमरा सरापे ले तब
भाई हमरा कुफुत कहेले
दिदिया के का बात कही
हमरा छोड़ सबे साथ रहेले
कह ना तू रे डोमवा
कवन नाता से बाधी अपना के
काहे बाधी हम अईसन नाता
सब रसिया से बधिह हमरा
नाता से नत बधिह
अतना तू करिहा, रे डोमवा
हथवा के न बंधिहा
एक बार जोड़े हथवा
माफ़ी ओहसे मांगे तू दिह
नत मुन्दिह मोतिया हमार रे डोमवा
नत पोछिह तू लोरवा
एक बार ओहे देखे खातिर
खुलल रखीह अंखिया
सब रसिया से बधिह हमरा
नाता से नत बधिह
रे डोमवा नाता से नत बधिह.............
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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.