उफानों से उछलता
लहरों से डगमगाता
खारे बूंदों को झेलता
भंवर मे फंसी मेरी कश्ती
और लाचार सा मल्हार “मैं”
और मुझे डुबाती मेरी कश्ती
और कश्ती मे सवार
अन्वान्छित सवारी.
हर लहर की उफान पर
मुझे काटते हमसफ़र
कहते भुला डालो ज़हन से
नन्ही कश्ती को
डूबा डालो मन मे बसे
दुलारी कश्ती को .
डूबा डालो नन्ही कश्ती की
सुनहरी यादों को
कैसे कहू उनके ही सैलाब से
नन्ही कश्ती को जन्मा था
नन्ही सी उस कश्ती को
अपने प्यार से दुलारा था.
छुटी आज वो कश्ती भी
उनके ही सैलाब से
न छोड़ता गर उसे,
निगल लेते वे अपने सैलाब से
कैसे मजबूर तुम कर पावोगे
कैसे मुझे तुम उससे
जुदा कर पावोगे.
क्या कहर ढालोगे
क्या जख्म ढावोगे
क्या मुझसे छुटावोगे
हर एहसास मैं तों मेरे
उसका ही एहसास है
नन्ही कश्ती को कैसे
तुम मुझसे भुला पावोगे..
गर है हौसला तों
मिटा डालो हांथों के लकीरों को
थामी हैं इन्होने उनकी अनगिनत लकीरों को
गर है हौसला तों
मिटा डालो साँसों के दहकते लय को
महकी हैं इन सांसों ने, खुसबू उन साँसों की
गर है हौसला तों
मिटा डालो होठों की गर्माहट को
खोयी हैं ये होठ, उनकी गर्म होठों की नर्माहट से
गर है हौसला तों
मिटा डालो तन पे सजी मेरे माथे को
सोयी हैं ये गोद मे उनके, घने जुल्फों के साये मे....
क्या क्या मिटा पावोगे
क्या कुछ मुझसे छुडा पावोगे
कोशिश तुम्हारी है गर
उन्हें मिटा जाने की
तों कोशिश है हमारी भी
उन्हें न भूल जाने की
मिटा भी पावो गर
इस नश्वर काया को
कैसे मिटा पावोगे
रूह को मेरे जिसमे
बसा रखी है रूह हमने
कश्ती के उस काया की
कुछ भी कर जावो पर नहीं हमे मिटा पावोगे
क्यूंकि हम हैं SoulMates….
१४/१२/११
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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.