May 19, 2012

क्यूँ बिन दस्तक आ जाती हों





नहीं जानता की कैसे व्यक्त करू और कैसे इन्हें ढालूं. कहानी, कविता, अनुच्छेद किस रूप में ढालू. बिन किसी रूप में ही सोचे शब्दों कों उन्मुक्त छोड़ दिया है ..... अपने विचारों की तरह..zin तुम्हारे ही तरह
 आज़ाद.. उन्मुक्त...








क्यूँ बिन दस्तक तुम
आ जाती हों दरवाज़े से
नहीं पता तुम्हे?
कि दरवाज़े के इस पार
कुछ लोग बसते हैं
हाँ, ये वही दरवाज़ा है
जिसके पीछे तोहफे में
तुम्हारी दी हुई गणेश की मूर्ति है
जो औरों के लिए सजावट है
पर हर रोज एक अच्छी शुरुआत
और तुम्हे अपने संग पाने की
दुआ मांगने का स्थान है.

जहाँ तुम घुसी हों
ये घर का वो बैठक है
जहाँ घर के लोग
अधिक समय संग गुजारते हैं,
मौन भाव से,
बिन कुछ कहे एक दूजे से
घन्टों टीवी से बतियाते हैं.
नहीं, यहाँ तुम ना रुकना
मूक सा शांत भाव तुम्हारे
चेहरे पर नहीं सजते
ठहरना भी नहीं वहाँ क्यूंकि
टीवी से आँखे पल भर के लिए हटा
बड़ी बड़ी आँखों से वे तुम्हे देखेंगे
प्रश्न चिन्ह सा तुम्हे घूरेंगे
मूक-बधिरों से वे इंसान
ना तुम्हे वो समझ पाएंगे
और ना ही बतियाएंगे..

बैठक से सटा ही घर का
डाईनिंग रूम है जिसे
बड़े चाव से मैंने कभी सजाया था
साल के लकड़ी की टेबल पर
सुर्ख रेशम का चादर बिछाया था
ताजे फूलों की गुलदस्ता कों
शीशे के मर्तबान में संजोया था.
शुर्ख रेशम के चादर पर,
चीनी मिट्टी के क्रोकरी में
गर्म खाने का लुत्फ़ सपरिवार
उठाने का इच्छा धरता था
तभी इतने चाव से इन्हें सजाया था.
सपरिवार खाने का वो शौक
फ्रीज़र से निकली हुई खाने कों
मिक्रोवेब में गर्म कर
टीवी के सामने बैठ
खाने का कार्यपूर्ण
करने में बदल चूका है
नहीं, यहाँ भी ना रुकना
क्यूंकि टेबल पर सजी
सुर्ख चादर भूरी हों चुकी है
गुलदस्ते के फूल सूख कर
फेंक दिए गए  हैं,
मर्तबान आज बच्चे के
कंचे और सीपों कों सहेज
रखने का काम आता है..

डाइनिंग रूम के पास ही है वो जगह
जहाँ माँ कों गर्मागर्म पराठे
सेम-आलू-मटर की सब्जी
और त्योहारों में पूरी-पुआ
बनाते देखता था, घर का किचेन है
गृहणियों कों इसे प्यार से सजाये
और अपने आप कों
वहाँ खोये देखा करता था,
बिखरी हुई बर्तने और
शीशे का वो टुटा ग्लास जिन्हें
मैं लन्दन से लाया था
पाकघर की कहानी तुम्हे बताएंगी
सो तुम ना रुकना वहाँ
दाहिने तरफ़ मुड जाना.

दाहिने से बायें तरफ का कमरा
जहाँ सब सोते हैं
बिखरी हुई चादर
अस्त व्यस्त तकिये
जो मेरे समेटने तक पड़े रहते हैं
वहाँ हों रहे शोर पर
अपना ध्यान ना देना
बेटा पढने की कोशिश कर रहा है
पास बैठी माँ सवाल कर रहीं है
सवाल का जवाब खुद उसके जवाब
देने से पहले ही दे रही है
और उसे जवाब ना आने का
सजा भी शोर में लपेट
संग संग दे रही है
शोर से परेशान मैं
कभी बरामदे और कभी
वैक्यूम क्लीनर के शोर में
खुद कों शांत करता रहा हूँ
खैर, यहाँ ठहर कुछ पल
मुस्कुरा सकती हों

दाहिना एक और कमरा है
इस कमरे की धीमी धीमी
रौशनी में काठ के बिस्तर पर
नर्म मुलायम गद्दी हैं और
उस पर  कॉटन के चादर
और कुछ तकिये, कुछ मसलंद
गिलाफों में सलीके से पड़े है
दीवालों पर मेरे खींचे हुए कई तस्वीर है
हाँ, दीवाल पर एक कांटी है जो
एक तस्वीर के टंगे होने का गवाह है
वहाँ मेरे बनाये हुए फोटो के फ्रेम में
कभी मैंने अपनी परिवार की
तस्वीर सजाई थी, नफरत से
शीशे कों तोड़ तस्वीर कों फाड
किसी ने डस्टबीन में बहा दिया.
यही एक कमरा है जो
सलीके से सजा है पर
मेरे यहाँ सोने पर
यहीं कुछ देर रह जाने पर
बवाल हों उठता है
पास पड़ी स्पीकर का डब्बा
किसी धुन में बज उठने तक
शान्त पड़ा रहता है.
ड्रेसिंग टेबल के ऊपर के खाने पर
मेरे स्वर्गवासी पिता की
मेरे माँ के साथ एक तस्वीर थी
जो दुबई से लाए काठ के फ्रेम में सजी थी
आज लोगों के कीच-कीच से थक
अपने वार्डरोब में छिपा डाली है.

कोने में  टेबल पर
भगवान की मूर्तियां हैं
जो घर के पूजा का स्थान है
और यहीं तुम्हारी दी हुई
दिया है जिन्हें मैं वर्षों से
पूजा के लिए जलाता था
जब से तुम गयी हों
वो जली हुई आधी बची बाती
घी में आधी सनी
आज भी दिए के गोद में पड़ी है.
टेबल के पास ही वो सिरहाना है
जहाँ बैठ मैं तुमसे घंटों बातें करता
थका अशांत मन शांत करता
मस्लंद कों बाहों में भीच
तुम्हारी एहसास कों जीता.
यही एक कोना है जो मेरा अपना है
यही एक सिरहाना है मेरा अपना है
यही तुम ख्वाबों से उतर कर
एक दुनिया बनाती हों
यही है एक कोना
यही है वो सिरहाना
जो तुम्हारे गोद-सा
सुकून हमे दे जाता है
यही है वो सिरहाना जहाँ
बिन दस्तक तुम आ सकती हों

यही है वो सिरहाना जहाँ बिन दस्तक तुम आ सकती हों हर बार बुलाने पर तुम आ हमे शांत कर जाती हों

2 comments:

  1. very pensive thoughts,so well expressed---this reminds me of a song 'mere ghar aana,aana zindagi'

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  2. thanks Indu jee...hmmm never thought of this ..inviting ZIN this ways was basically was inviting ZINDAGI...bilkul sahi hain ..kuch waise hi gaane ke bol sa ban pada hai ye post...

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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.