Jun 23, 2013

बाहें...

कभी डरता
कभी रोता
अश्रु भरी आँखों से तुम्हे देखता
पलक झपकते  
नन्ही सी तन कों तुम
अपने आगोश में लेती,
और, सब कुछ भुला जाती

ना जाने कहाँ से
तुम इतना
प्यार, दुलार, ममता
साहस, निडरता
मुझ पर लुटा जाती,
जिंदगी जीने का
एक और सबब दे जाती

अब कहाँ हों,
कोई सुराग नहीं
कोई निशाँ नहीं
खो गयी हों, कहीं,
ढूंढ रहा हूँ मैं
भयभीत, परेशान
तुम्हारे निशाँ कों
शायद मिल जाओ
और फिर एक बार
उन्मुक्त हों
आगोश में लो मुझे....

आज नहीं हैं कोई जो
तुम्हारे होने का एहसास बंधाये
जो तुम्हारे अस्तित्व कों जताए
ना रिश्तों में, ना नातों में
ना दूर, ना कोई पास
सब सुना सा पड़ा है
सब बिखरा सा पड़ा है
कहाँ हों तुम कि तुम मिलो
निर्भीक हों
एक आखरी नींद मैं सो लू...
कहाँ हों तुम ?

ना मिलती तों भी क्या,
बस एक ही आस है
जिंदगी की प्यास है
संगिनी है जो
मेरे निर्जीव राहों की,
जो तुम्हे फैलाये कहती,
क्यूँ मचलते हों आगोश में                                                                         
इनके आने कों
देखो कब से खड़ी हूँ
बाहें फैलाये
एक बार अपने आगोश में तुम्हे पाने कों.
एक बार अपने आगोश में तुम्हे पाने को

1 comment:

  1. bahut sunder...sidhe saaf alfazon main bayan ker gaye....ek laay si baandh gaye kisi ka honaa ,,,fir bahut khaas honaa,,,kabhi hoker bhi na hona or her pal her raah sang hona... bahut hi sunder..
    duaa kerti hun apki or unki joddi saath saath yunhi bani rahe,,,!!!!!amin

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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.