Jun 19, 2013

आज जनमदिन है तुम्हारा

आज हमारी जान की जन्मदिन है. खुशियों सा ये दिन जितना उनके लिए है उनसे ज्यादा हमारे लिए है. हमारे लिए तों त्यौहार सा है. अरे भई हों भी क्यूँ ना आज के दिन ईश्वर के अनुकम्पा से, माँ- बाबा के आशीर्वाद से हमारे सोना का जनम हुआ त्यौहार सा तों होगा ही. मन में कई अरमान थे कि हम उनके इस दिवस में उनके साथ होंगे. उम्र के बराबर तोहफों का सिलसिला होगा, पर बेदर्दी की आज्ञा थी की कोई तोहफा उन्हें ना भेज जाए. इससे बड़ी सजा क्या होगी. शुभ आशीष और प्यार के लिए ये दिवस की जरूरत नहीं पड़ती हमे, हम तों रोज ही दुआ में उनकी खुशियाँ माँग ही लेते है. खैर, आज्ञा का पालन तों करना ही पड़ा. और कोई चारा भी ना था. बहुत सोचा तों एक ख्याल आया की जो देन कभी उन्होंने हमे दी थी उन्ही से आज की दिन सजा डाले. सो एक कोशिश लिखने की हमने की और कुछ जनम दिन पर हमने लिख दिया... यही भेंट कर रहा हूँ आज उन्हे.. आशा है उन्हें पसंद आएगा .... प्रस्तुत है एक रचना “ आज जनमदिन है तुम्हारा
 
 सोचा आज जनमदिन है तुम्हारा तों
मैं तुम्हे जनमदिन की बधाईयां दे दूँ..
अपने इस त्यौहार कों तुम संग मना लू

कलफ मंझे कुर्ते पर
इस्त्री की सांप सुंघाई
कड़क आस्तीन पर
धोबी से पत्थर घिसवाई
मजमुए की इत्तर रुई में चुभा
कान तले समाई
सुरमे की डिबिया खोल,
आँखों तले सुरमा सरकाई
डाबर के डब्बे से चमेली तेल
हथेली में ले बालों में चिपकाई
तब आया शरूर की
हाँ अब हैं हम तैयार ...
कहे मन ही मन
पान के पीक कों थूक के
चलो अब चले अपनी जान कों
जन्मदिन की बधाईयां दे आयें...


निकाल घर से फटफटिया
दो चार किक लगायी तों
मन में ख़याल आया
अरे भाई इस्त्री की कलफ निकाल आएगी
तुरंत सटके, हम कूदे फटफटिया से
चप्पल कों घसीट हम राह पर निकल आये
घिसुआ रिक्सा कों आवाज़ दे पास बुलाया
कहा चलो भई पैडल घुमावो
आज इनका जनम दिन है
हम जरा जन्मदिन की बधाईयां दे आयें

रिक्शे की चू-चपड़ में
मूछों कों कसे  जा रहे थे
राह में फुलवा चाचा
गुलाब कों दोंगे में सजाये
पसीना टपकाए रहे थे
देखे तों चिलम से सुट्टा खीच पूछे
का बबुआ बड़े ताव से जाय रहे हों

कहे हम आज इनका जनम दिन है
जनम दिन के बधाईयां देने जाए रहे हैं
रोके दिए वो रिक्से कों, कहे
बबुनी का जन्मदिन है
हम्रारे गुलाब कों लिए जाईये
प्रेम से दो बोल बोलिएगा
गुलाब सी बबुनी संग
ढंग से पेश आईएगा..
आशीष हमारे बबुनी कों दीजियेगा और
थोडा सा अपने संग भी लीजियेगा

बुजुर्ग चाचा के बाग की गुलाब
हाथों में ले
चरमराते रिक्शे से चलता गया
कोने के मंदिर से बायें जाना था
मंदिर में रुक माथा टेका और निकाल पड़े
सामने से देखा तों
कमंडल और फूलों का दोना लिए
बरही के पंडित जी चले आ रहे थे.
आज तों देर होना ही है...ये भी रोकेंगे..
वही हुआ...पंडित जी ने रिक्शे कों रोका और
टोक दिए,,कहाँ बन-ठन के सवारी निकली है
हम कहे पंडित जी आज इनका जन्मदिन है
सोचे जन्मदिन पर बधाई दे आये
पंडित की पंडिताई आगे आई
झट से पत्ते में पूजा के सिन्दूर कों बाँधा
पुडीये में मिश्री की ढेल और बताशा लपेटा
कहने लगे बबुनी का आज जन्मदिन है
आशीर्वाद लेते जाईये ..
माथे में टिका लगाईयेगा
ईश्वर उन्हें बरक्कत दे, खुशी दे...
हमारा आशीर्वाद जरूर पहुचाईएगा

आज तों दिन ऐसा बधा था की हर पल
लोग रोक रहे थे और हम तों
भाग उन्हें समेटना चाह रहे  थे..
राह में कलुआ चाचा के यहाँ भी जाना था
सौगात भी उनका वही बंधा रख आये थे
माँ कों देखा दवा के दूकान से दवा ले आ रही थी
देखते बोल पड़ी जा रहे हों बबी कों
जन्मदिन की बधाई देने जाओ...अरे हाँ रुको
कलाई से कंगन झट से खोल बोली
दे दीजिए कहियेगा माँ का आशीर्वाद है
सुखी रहे खुश रहे ....
माँ,  हम सकुचाए, ई काहे दे रही हों...
कही की बेटी है हमार.
आप जाईये और
जन्मदिन की बधाई दे आईये....

रुकते राकते, उछलते हिलते
पहुच आये थे इनके गली में
रिक्शे की रुकने की आवाज़ गली में सुनी नहीं
कि लगा परदे के ओट में हलचल हुई है
उनके घर के दरवाज़े ली घंटी कों बजाया
झट से सोना निकल आई परदे के ओट से
कलाई कों थामा और अंदर खीच लायी
राह देख रही थी..
रिक्से की आवाज़ से छुप गई थी
बाँहों में भर, उन्हे,
अपने आगोश में लिया
माथे कों चूम हमने
जिंदगी भर की खुशिया पाने कों आशीष दिया..
राह तकती इन प्यासी आँखों कों
अपने प्रेम का छुवन दिया
जिंदगी के राहैं फूलों से सजी हों
गुलाबों से भरा दोना क़दमों में किया
माथे पे तिलक और मिश्री के प्रसाद से
ईश्वर का आशीष दिया
माँ के कंगनों से सजी उनकी कलाई
पैरों कों पाजेब सजाई तों वो सकुचाई
माथे पे बिंदिया, हाथों में चूडियाँ सजाई
तों शर्मा वो कुम्ह्लायीं
आगोश में भर कर फिर हमने
चुम्बन से उनके हर अंग कों प्यार किया
जनम दिन में प्रेम से उन्हें सराबोर किया
अब हम जनम दिन उनकी सजा रहे थे
प्यार से उन्हें जन्मदिन में नहला रहे थे
अब हम जनम दिन उनकी सजा रहे थे
प्यार से उन्हें जन्मदिन में नहला रहे थे
  
खुशियाँ उनकी संग हों
हंसी उनकी अलंकार हों
बरक्कत उनका यार हों
साथ  संगी परिवार हों
बस इतना ही चाहता हैं मन
बस इतना ही मांगता है ईश्वर से ये मन .....
जनम दिन की असंख्य बधाईयां

२०/६/२०१३

1 comment:

लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.