कभी टटोलता,
कभी छेड़ता
कभी आड़े,
तों कभी तीरछे करता
ना शब्द पृष्ठ पर आते,
ना लय मे बंधते..
शब्दों के छेड़ छाड से
पृष्ठ भी परेशां हुए
अपने कोरेपन से थक क्लांत हुए.
कोरेपन से क्लांत पृष्ठ भी
उन्मादित हो कराह गए
या तों शब्दों से आज सजा
या रंगों मैं आज भींगा
सुनी सी इस सूनेपन को
भंगित कर आजाद दिला
ना खीच सका गर रेखायें तू
घोल सका ना रंगों को तू
ना सजा सका गर शब्दों को तू
ना सोच कहीं तू .ना रुक अभी तू
स्याह उढेल तू पृष्ठभूमि पर
कारापन (कालापन) से मोक्ष दिला ..
सुन रहा मैं सोच रहा मैं
शब्द्विहीन सा देख रहा मैं
किंकर्तव्य सा पड़ा रहा मैं
क्या कहूँ मैं क्या सुनावु
किन शब्दों से मोक्ष दिलावु..
लिखता था मैं पन्नों पर जब
शब्द खुद ही सज आती थी
सूख हो या दुःख हो, जब भी
खुद ही वो सज-धज आती थी ...
आज सजा खुद उलझनों मे
शब्द कहाँ से सुलझाऊंगा ...
बंधा पड़ा मैं मोहपास में
बंधा पड़ा मैं रिश्तों मैं
भरे पड़े हैं रिश्ते नाते
भरे पड़े हैं लोग जहाँ पे
भीड़ भाड की इस मेले में
मैं उलझा सा खड़ा पड़ा हूँ
उलझे से इस मनस्थिति मैं
शब्द कहाँ से सुलझाऊंगा
प्रेरित हो मैं जब लिखता था
शब्दों के संग हँसता था तब
प्रेम सुधा में रंग खिलते तब
प्रेम विरह में आज खड़ा हूँ
प्रणय आस में, पड़ा हुआ हूँ
प्रेम विरह मैं आज पड़ा मैं
शब्द प्रणय का कहाँ पावुंगा
कैसे मैं अब शब्द सजाऊँ
कैसे मैं रंग भर जावू....
नतमस्तक हो देख रहा मैं
कोरे पृष्ठ को ताक रहा मैं
खालीपन के इस रेले में
शब्द कहाँ से मैं ले आवु
कैसे मैं मोक्ष दिलावु...?
कुंठित हो मैं भांप रहा था
अपने हालत को कोस रहा था
नैनों से दो बूंद बह आये
पृष्ठ पर लुढक वो आये
भीगे से इस जल-स्याही से
मोक्ष सभी का कर आये
कोरे कोरे पृष्ठ पर
सारांश सभी का लिख आये
मोक्ष सभी का कर आये.......
27-11-11
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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.