Nov 28, 2011

हर रोज मैं जिम जाता हूँ,

सबेरे-सबेरे घंटा लगा कर
निंदिया को दूर भगा कर
कसमसा कर उठ कर
जिम जाने को जग जाता हूँ

टेढ़े मेढे मुह बना कर
आँखें ऊपर नीचे कर कर
आईने मैं मुह सजा कर
जिम जाने को सज जाता हूँ
पहन जांघिया कस लंगोट मैं
गंजी पहन आईने आता  हूँ
जिम जाने से पहले खुद को
पल दो पल देख जाता हूँ

देख आइने, सोचता हूँ
कब? मैं भी सलमान बनूँगा?
मोटे मोटे डोले होंगे
तगड़े तगड़े टांगें
सेक्सी सी एब्स होंगे
और सेक्सी काधे..
कब मैं भी सलमान बनूँगा?
अब रोज मैं जिम जावुंगा ...

Nov 27, 2011

मोक्ष

कभी टटोलता,
कभी छेड़ता
कभी आड़े,
तों कभी तीरछे करता
ना शब्द पृष्ठ पर आते,
ना लय मे बंधते..   
शब्दों के छेड़ छाड से
पृष्ठ भी परेशां हुए
अपने कोरेपन से थक क्लांत हुए.

कोरेपन से क्लांत पृष्ठ भी
उन्मादित हो कराह गए
या तों शब्दों से आज सजा
या रंगों मैं आज भींगा
सुनी सी इस सूनेपन को
भंगित कर आजाद दिला

Nov 17, 2011

तू है कौन?

पृष्ठ पर अंकित
शब्दों ने पूछा था,
तू है कौन?
पढ़ शब्दों को तेरे
समझ ना पाया कि
तू है कौन?

शब्दों ने तेरे,
दगा तुझसे था किया
समझा ना सकी,
तू है कौन?

शब्दों से त्राह हो तेरे
अपने शब्दों को टटोला
ढूँढ अपने शब्दों से
जवाब टटोला
की तू है कौन?

तू चपला तू चंचला
तू अस्थिर, एक दरिया सी
तू शांत तू अथाह
तू सागर, गहरे भावों की