Jul 30, 2011

जिंदगी, भागती क्यूँ है

जिंदगी, भागती क्यूँ है
अपने ही वेग मे?
अपने ही तेज मे?
रुक,
ना भाग
तू इस तेज मे
कौन दौड पाता है
तेरी वेग मे ?

दिए थे पल तुने कई
बटोर पाए कई
बिखेर आये कई
छोड़ आये मंजीलें कई
छोड़ आये लम्हे कई
जोड़ पाए रिश्ते कई
तोड़ आये रिश्ते कई

Jul 22, 2011

संगीत और zin(dagi)

आज उसी मंज़र में हूँ उसी माहौल में हूँ जहाँ कभी हम अपने जिंदगी के साथ सबसे हसीं पल जिया करते थे. कमरे में सब कुछ एक निश्चित जगह पर थे जहाँ उन्हें होना चाहिए एक सलीके से लगी हुई किताबे, सजी हुई एक एक सामान, कोने पर सजे हुए ताज़े रजनीगन्धा फुलो का गुलदस्ता, साफ़ की हुई हमारी जीत के मेडल्स, बंद टीवी, सब कुछ अपने सलीके से सजे हुए. . कमरे में आज वैसी ही मध्हम रौशनी करती हुई अन्गिनत से मोमबतिया सितारों से टिमटिमा रही हैं ...कमरे में एक कोने पर सजी हुई एक गद्दी, जिसने गलीचे को बड़े सालीनता से थाम रखा था और दीवाल के ओट लिए रंग बिरंगी गद्दियाँ जो हमारी बड़ी ही पसन्दीदा जगह हुआ करती थी. याद है यही वो जगह हुआ करती थी जहाँ हम जिंदगी के कई कई घंटे, अनगिनत पलों को यादगार बनाते थे याद हैं ना तुम्हे ...
देखों ना अभी वही गीत चल रही है जब तुमसे हमारी मुलाकात हुई थी..माहौल ना जाने क्यूँ आज भी वैसी ही है ...याद है वो गाना वो शब्द ....
ऐ ज़िंदगी गले लगा ले हमने भी तेरे हर इक ग़म को
गले से लगाया है ....
हमने बहाने से, छुपके ज़माने से
पलकों के परदे में, घर कर लिया तेरा सहारा मिल गया है ज़िंदगी
ऐ ज़िंदगी ...

Jul 14, 2011

बरसात

कल बरसात हुई थी
नील निर्जन आसमा तले
सुखी तपती रेट पे
नन्ही नन्ही बूंदों से
भींगा गयी तन मन को
कल बरसात हुई थी
नील निर्जन आसमा तले ....

शब्दों के बूंदों से
हंसियों के  झोंकों से
गुदगुदाती गुनगुनाती
कल उनसे मुलाकात हुई
अनपे बातों से, शब्दों से
निर्जन मन को,
सूखे से तन को
वो हमे अपने प्यार की
बरसात से भींगा गयी

कल बरसात हुई थी
बड़ी जोर से उनके प्यार की
बरसात हुई थी

Jul 9, 2011

सिर्फ एक दिन ......

बिन टन टनाहट जगना
आँख खुलते चाय
रुकी हुई ट्रेडमील
कवितावों की न्यूज़पेपर
बिन ट्राफिक के रास्ते
बिन टाइम का ऑफिस
मुस्कुराता बॉस
तारीफें करता ग्राहक
आज्ञाकारी टीम
मनपसंद टीफीन
टाइम पर घर  निकल  पाना  
मुस्कुराती सजी बीवी
टीवी से दूर, पढता बेटा
बिन दखल के स्व-पल
तेज आवाज़ में गाते जगजीत
मनपसंद डिनर
सेवईयों की दावत
बिन टीवी के आवाज़ की नींद
ख्वाबमैं महबूबा zin

सारे के सारे 
एक दिन के लिए भी क्यू ना होता है?
लंबी  सी इस जिंदगी में
सिर्फ एक दिन सब कुछ
अपने मन का सब कुछ
क्यूँ नहीं हो पता  है
सिर्फ़ एक दिन....  

Jul 3, 2011

दो वर्ष

दो वर्ष
दो लोग
दो दिल
दो अरमान
दो प्यार
दो लकीरे
दो लबें
दो मन
दो अकाँछा

कई बार
मिले - बिछड़े
टूटे - जुड़े
गिरे - संभले
संभले - उठे
जिंदगी (से) लड़े
हारे – जीते
जीते - जीए
रुके - भागे
भागे - संभले

Jul 1, 2011

एहसास ये कैसा है

एहसास ये कैसा है
न छुड़ा पाए दामन जिनसे
ये प्यास कैसा है?

लकीरें टेढ़ी मेढ़ी सी इन हाथों
को मिला जाने का ये
जिद्द कैसा है?

लबों पर सजी उन एहसासों का
किसी और एहसासों से
न मिटा देने का ये
जिद्द कैसा है ?

महकती सांसों से सजी उन एहसासों का
किसी और सांसों से
न मिटा देने का ये
जिद्द कैसा है ?

उँगलियों का उँगलियों से लिपटे उन एहसासों का
किसी और से न
लिपटने देने का ये
जिद्द कैसा है ?