Jan 30, 2012

रेला बूंदों का


अनंत अडिग नभ के तले
खड़ा देख रहा मैं
कारे मेघ को
एक प्रश्न चिन्ह की तरह
कई प्रश्न चिन्हों को बटोरे
कई प्रश्न चिन्हों को छोड़े
एक प्रश्न के संग कि क्यूँ हैं
आज सब कुछ यूँ उदास?

प्रश्नों के वेग में ही
अनायास सी टपक पड़ी एक बूँद
नन्ही सी छाप छोड़, मुझे टटोलती,
हुई विलीन चेहरे के शुन्य पटल पे

उसी नन्ही बूंद को
पीछा करती एक और बूंद
उस बूंद के पीछे के और
और के साथ एक और .
टपकने लगे बूंद यूँ
रेला हों बूंदों का ज्यूँ.
कई बूंदें
एक के बाद एक बूंदें
बूंदें ही बूंदें

कई नन्ही सी
कई और नन्ही सी
कई बदमाश
कई शरीर
कई हट्टेकट्टे
कई शांत
कई नटखट से
आते छूते
गुदगुदाते
और शमा जाते 

Jan 25, 2012

दोस्त क्यूँ बनी तुम ?

दोस्त क्यूँ बनी तुम ?

काश की ....
तुम मेरी दोस्त न होती
कितना अच्छा होता...
सोचता हूँ पूछता हूँ
दिल से अपने कि
हैं न ये सच्चाई ?
जब से तुम आई हों,
हैं और भी कई,
पर दिल तुम्हे ही ढूँढता है

जब से आई हो
रातें जगाती हो
फिर भी हर बार
रातें इतनी छोटी कैसे
कर जाती हो?
आई हो अब से
रातों को मैं जगता हूँ
ऑफिस जा कर फिर
जम के सोता हूँ.

बबून सा मोटा, मेरा बॉस
हर बार यही कहता है
बिन शादी के कौन तुम्हे
रात भर जगाता है ?
मच्छर भी नहीं की
कह दो बबून को
तुम सा मोटा मच्छर ने
घर पे रात भर सताया है...

Jan 19, 2012

ख्वाहिसें क्यूँ इतनी बेवफा होती हैं?

जिंदगी में एक ही चीज़ है जो कभी कम नहीं होती वो है ख्वाहिशें. ख्वाहिशें हमेशा बनी रहती हैं..बचपन से ले कर अंत तक.. बस बदलती है तों उसकी रूप..कभी कम तों कभी ज्यादा पार हमेशा ख्वाहिशें हमारे संग रहती है, बस बदलता है तों उनका रंग. इन्ही रंग बदलती ख्वाहिशों के नाम एक रचना... एक कोशिश अपने ख्वाहिशों को शब्दों मैं ढालने की...

ख्वाहिसें क्यूँ इतनी बेवफा होती हैं?
आज एक, कल एक
और अगले पल
एक नयी होती हैं|

इस स्वार्थ सी दुनिया में
क्यूँ वो अंतहिन होती हैं?
दामन आज किसी का
और कल किसी एक का
थाम लेती हैं?
क्यूँ फिसलती हैं ख्वाहिशे?
क्यूँ बेवफा हो जाती हैं,
ख्वाहिसे, क्यूँ इतनी बेवफ़ा होती हैं?

सोचता हूँ, तलाशता हूँ
कोई तो हों एक वफ़ा सी,
थाम कर मेरे दामन को,
अंत काल तक हों मेरे साथ

तलाशता रहा इक
वफ़ा ख्वाहिश को
अनंत दिशाओं में,
तलाशता रहा,
अंतहिन सितारों में

मिली हमे!!!!

Jan 16, 2012

Kolaveri Di

गीत बनी तों खूब बनी, जिसे देखो वही गुनगुना रहा है. लड़के ने कम उम्र मैं ही क्या खूब लिख डाली. एक के बाद एक रिकॉर्ड तोड़ डाले. रचना हों तों ऐसी हों की हर कोई अपने बोल सजा जाए... हिंदी मलयालमतमिल क्या अब कुछ दिन पहले अरबी मैं भी उसके धुन पे बोल सजा गए. इतनी पसंद आई हमे भी की हमने भी धुन अपने मोबाईल पर सजा लिए... अब सजा तों लिए जब देखो बज जाता है और चिढा जाता है— “वाई दिस कोलावेरी कोलावेरी दी....” अब अपनी कल दिन की परिस्थिति को अपने शब्दों में सजा गया ...


अलसाया सा मैं पड़ा हुआ था
नींद के बाँहों में उल्टा पड़ा था
“जिन” पास से उठ आई
नर्म नर्म उँगलियों से उसने
बालों को मेरे सहलाई
गर्म चाय की प्याली में
प्यार डाल कर थी  लायी
उठता ना देख हमें फिर  
आगोश किया फिर बाँहों का
भीगे भीगे बालों से
बरसात किया कुछ बूंदों का  
बूंदों की बरसात से भीगे
नखरे हमने भी दिखलाए
मुस्काई वो अलसाया मैं
मैं गुर्राया वो मुस्काई
छुड़ाने की भरसक कोशिश दिखाई
समझी मैं अब, दवा करती हूँ
नींद से तुम्हे अभी जुदा करती हूँ
थाम हमे फिर बाँहों मैं
लब को लब से सहलाया
नर्म नर्म लब से उनकी
मधुरस को मैं पी पाया
प्यास बढ़ी कुछ और बढ़ी
कुछ और भी प्यास सजी
सजती कुछ और प्यार, तभी
गाने के थे बोल बजे ..
वाई दिस कोलावेरी कोलावेरी दी
(why this Kolaveri Kolaveri Di ?)

Jan 15, 2012

क्या हैं डोर, पतंग और मांझा ?

झरझर थरथर
उडी उडी
कभी यहाँ गयी
कभी वहाँ उडी
कभी लटक झटक
कभी मटक मटक
यूँ थिरक थिरक
कभी नभ को उडी
कभी धरा गिरी
कहीं लाल लाल
कहीं नील नील
कहीं पान से
कही पूछ से
तू सजी सजी
झरझर थरथर
उडी उडी

उड़े तू साथ
धागे के संग
मचल मचल
तू उड़ती है
थिरक थिरक...
फिरकी से कभी
ढील ढील
कभी लपट लपट
तू फ़िरक फ़िरक
जीवन रस पीती
जी जाती है तू
थिरक थिरक...
तू पतंग नहीं
कागज का एक
रंग समझाती
तू जीवन का...

बचपन के दिन :पतंगबाजी

गर्मी के छुट्टियों मे जब भी ननिहाल जाता, गर्मी के लू भरी दुपहरिया मैं भी पतंग उड़ाने से बाज नहीं आता. इतना पतंग उड़ाते की गर्मियों से जब मैं बिहार से वापस अस्सम अत तों लोग पूछते की कहते हैं सांवले पर दूजा कोई रंग नहीं चढ़ता है... पर तुम्हे देख कर नहीं लगता की ऐसा कुछ होता भी है... मैं और काला हों कर आता. बहुत मजा आता था पतंग उडाने मे. जेठ के दुपहरिया मैं लू से परेशां हों कर परिवार वाले जब पंखे के नीचे सोये हुए होते तों हमारे लिए ये सबसे अच्छा मौका होता... बस मंडली अपने अपने घरों से चुप चाप निकल आते. मिलने के बाद हिसाब किताब होता की किसके “हुचके” (भोजपुरी मे फिरकी को कहते हैं) मैं कितना धागा है और मांझा किसके हुचके के सूत को देना है. अब उस समय तों हम ररेडीमेड मंझा लगे सूत तों खरीद नहीं सकते थे..तों खुद ही बनाना पड़ता. अब जिस दिन हमे मांझा बनाना होता तों उसके दो दिन पहले से ही किस के घर मे, छत पे ट्यूब लाइट या बिजली के बल्ब खराब पड़े हैं उसकी इन्वेस्तिगेशन चालू होती. मिल गयी तों ठीक है नहीं तों किसी पडोसी की सामत आ गयी.. ज्यादा नहीं पत्थर मार कर ट्यूब तोड़ दिया जाता..या घर पर ही बल्ब को खोल कर जम के टेबल पर

Jan 9, 2012

चाँद को कभी देखा है????

आज शायद पूर्णमाशी है तभी चाँद इतना खुबसूरत सा लग रहा है. आते वक़्त कमबख्त हर पल मेरे आँखों के सामने ही रहा पूरी रास्ते.  इतना खुबसूरत की क्या बतावु.. आज तेरी याद बहुत आ रही थी. तुम ही तो थी जिसके साथ मैंने चाँद को पहचाना था..उसकी खूबसूरती को साथ साथ निहारा था... कितने पल साथ हमने चाँद के साथ चाँद के बारे में बातें कर कर के गुज़ारे थे... आज उन ही पलों को समेट रहा था ....

चाँद को कभी देखा है????
आज किसी ने हम से पूछा है
चाँद को कभी हमने गौर से देखा है
क्या दिखा है, क्या सोचा है?

सोचा मैं, मुस्कुराया
मंद ही मंद मुस्कुराता रहा
यह भी कोई पूछने की बात है,
चाँद को कभी हमने देखा है?

क्या कहते उसे,
पगली, चाँद को मैंने कहाँ देखा है?
वो तो हर पल
हर छन मेरे साथ है

देखा नहीं
हमने तो उसे निहारा है
पूर्ण चेहरे से ले कर...
सरकते घुन्घतों मैं
हर रोज़
उसकी घटती अदाओं को देखा है...
हर पल उसे निहारा है
फिर भी कोई पूछती है
चाँद को कभी देखा है...

Jan 5, 2012

टूटे से कई मंजील


कभी कलकाता के सड़कों पर गलियों के पुरानेमकानों के ऊपर आपने गौर किया है? कभी एक ज़माने की हुस्न मकानों मैं गिने जाने वाले माकन आज जर्जर हो पड़े है ... कभी ये मकान बोल सकते तो ऐसा ही सुनाई पड़ता.... 







टूटे से कई मंजील

स्याह सी रात में
शायद बहुत ही
दिनों पहले की बात हो..
गलियों मैं टहलते जा रहा था
अँधेरी सुनसान सी
अमावश की रात
अपनी तन्हाईयो के साथ
अंतर्द्वंद मैं खोया
लावारिश पत्थरों को
बिखेरता चला जा रहा था

Naina you sleeping????

its about a dream girl..a fantassy about one who existed but i dared not to declare that she did at that moment. This happens to be my 1st composition (haha if you would really qualify this as a composition) in English.. Naina is a name i would love to name anyone, after Sona, as am crazy about a girl with Beautiful Eyes.
(this was arranged by Zin for one of our private blog)

Naina you sleeping????
hey naina you dreaming???
thoughts of you
are all around ....
hearing you
what we talked tonight...
listening to your giggles all around...
Feeling you in this dark night....
naina,how cud you sleep
so early tonight...
i can see you in dark,
you may be in sleep....
but you not in sleep.....
your hands are looking
for your heart
not knowing
its in my heart..
your lips are tremblin
searchin for mine...

मेरे घर का एक कोना





मेरी  कुछ शब्द महीनों पहले जब लिखना  शुरू ही किया था .........




मेरे घर का एक कोना
वो कोना जहाँ उदास मन भी, बहार बन जाती है

वो कोना जहाँ सिरहाना है
वहीँ जहाँ कोई हर रात आती है..

हर पल की नींद चुराती है
नींद में  ख्वाब दिखाती है

ख्वाबों में अपने होने का एहसास दिलाती है
ऐसा लगता है कि वही है वो

कहीं है मेरे साथ
हर पल हर वक्त

आँखें देख तों नहीं पाती
पर एहसासों की महक कहती है
यहीं है , यहीं हैं..
एहसास तुम्हारे होने का
“अशांत” मन को “सोना” सा एहसास पाने का