अनंत अडिग नभ के तले
खड़ा देख रहा मैं
कारे मेघ को
एक प्रश्न चिन्ह की तरह
कई प्रश्न चिन्हों को बटोरे
कई प्रश्न चिन्हों को छोड़े
एक प्रश्न के संग कि क्यूँ हैं
आज सब कुछ यूँ उदास?
प्रश्नों के वेग में ही
अनायास सी टपक पड़ी एक बूँद
नन्ही सी छाप छोड़, मुझे टटोलती,
हुई विलीन चेहरे के शुन्य पटल पे
उसी नन्ही बूंद को
पीछा करती एक और बूंद
उस बूंद के पीछे के और
और के साथ एक और .
टपकने लगे बूंद यूँ
रेला हों बूंदों का ज्यूँ.
कई बूंदें
एक के बाद एक बूंदें
बूंदें ही बूंदें
कई नन्ही सी
कई और नन्ही सी
कई बदमाश
कई शरीर
कई हट्टेकट्टे
कई शांत
कई नटखट से
आते छूते
गुदगुदाते
और शमा जाते